Thursday, March 29, 2007

बहुराष्ट्रीय गुलामी के खिलाफ धारदार लड़ाई का समय

पिछले 15 सालों से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का जो जाल भारत के ऊपर फैल रहा है, उसका असली चेहरा अब उजागर हो रहा है। इन कंपनियों ने विश्वबैंक और अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मदद से और कर्ज में फंसी भारत सरकार की कमजोरी का फायदा उठा कर 1991 में घुसने का विधिवत रास्ता बना लिया था। केन्द्र सरकार ने विश्वबैंक और मुद्रा कोष के दबाव में नयी आर्थिक और नयी औद्योगिक नीतियां बनायीं जिन्होंने विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को उद्योग, सेवा और वित्त के क्षेत्र में घुसने का रास्ता साफ कर दिया। एनआरआई (अप्रवासी भारतीयों) को आगे करके हजारों कंपनियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में घुसपैठ शुरू कर दी। इन कंपनियों के सामने कुछ रुकावटें थी, मात्रात्मक प्रतिबन्ध (क्यूआर) और निवेश की सीमा बांधने के कारण। उन्हें भी कानूनी संस्था विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के द्वारा दूर कर लिया गया। इस तरह नब्बे के दशक में एक के बाद एक सरकारों ने विदेशी कंपनियों के लिए भारत की अर्थव्यवस्था और बाजार को खोल दिया।
भूमण्डलीकरण और उदारीकरण के इस दौर में कई सार्वजनिक प्रतिष्ठान बेच दिये गये। एनडीए सरकार ने तो इस काम के लिए एक मंत्रालय ही खोल दिया था। कई भारतीय कंपनियों को विदेशी कंपनियों ने खरीद लिया विलयन (मर्जर) कर लिया। इससे कर्मचारियों की छंटनी हुई। उन्होंने थोड़ा-बहुत शोर भी किया। बैंक-बीमा में विदेशियों को घुसने की इजाजत देने का बैंक और बीमा कर्मचारियों ने भारी विरोध किया, करोड़ों हस्ताक्षर कराये, हड़ताल भी की पर वे रोक न पाये।
आजादी बचाओ आंदोलन जैसे आंदोलन देश में इस नयी गुलामी के खिलाफ जागरूकता अभियान शुरू से ही चला रहे हैं। स्कूल-कालेजों के विद्यार्थियों को इस आंदोलन ने झकझोरा है। उन्हें समझाने की कोशिश की है कि यह किसी एक-दो क्षेत्र का मामला नहीं है। एक सुनियोजित बड़ा हमला है जिसके सामने एकाध अपवाद को छोड़ कर सभी सरकारें घुटने टेक चुकी हैं। उल्टे वे हमलावरों का साथ देकर, अपनी गद्दी बचाने के चक्कर में देश के साथ गद्दारी कर रही हैं।
सूचना तकनीकी का लाभ उठा कर बहुराष्ट्रीय हमलावर और उनके साथ मिलीभगत करने वाली सरकार लोगों को बहकाने के लिए आक्रामक प्रचार करती रही हैं। उपभोक्तावादी संस्कृति फैला कर आम आदमी की तीखी प्रतिक्रिया को भोथरा करने की भी कोशिश बड़े पैमाने पर जारी है। लोगों को बेरोजगारी, मंहगाई, गरीबी और भारी गैरबराबरी का सामना करना पड़ रहा है जिससे उनके मन में आक्रोश है जो अभी दबा हुआ है।
इधर सरकार के दो बड़े निर्णयों ने विरोध की परिस्थिति में विस्फोटक का काम किया है। पहला निर्णय है विशेष आर्थिक क्षेत्रर् ;ैम् सेजध्द खोलने का। हजारों एकड़ जमीन किसानों से लेकर देशी-विदेशी कंपनियों को दी जा रही है। इन क्षेत्रों को 'विदेशी इलाके' ;वितमपहद जमततपजवतलध्द का दर्जा दिया जा रहा है जिनमें कोई भी भारतीय कानून लागू नहीं होगा। दूसरा निर्णय है खुदरा बाजार में विदेशी पूंजी निवेश को इजाजत देना। अमरीका की विशालकाय कंपनी वाल-मार्ट, जर्मनी की मेट्रो, इंग्लैण्ड की टैस्को और फ्रांस की कारफूर देश के खुदरा बाजार में भारतीय कंपनियों-रिलायंस, भारती, टाटा का हाथ पकड़ कर घुस रही हैं।
इन दोनों निर्णयों से देश में लाखों किसान, छोटे व्यापारी विरोध पर उतर आये हैं। किसानों के बड़े-बड़े प्रदर्शन और संघर्ष देश के कई प्रदेशों-महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में उठ खड़े हुए हैं। कई शहरों में खुदरा व्यापारी भी आन्दोलन कर रहे हैं। जमीन और खुदरा व्यापार देश के कोई 70 करोड़ लोगों की आजीविका का आधार है। अब लोगों को बहुराष्ट्रीय हमले का नंगा रूप दिखायी पड़ रहा है।
बड़े आंदोलन की क्रान्तिकारी परिस्थितियां बन रही हैं। इस वक्त सभी जनसंगठनों के साथ एकजुट होकर इस संघर्ष को धारदार बनाने का समय आ गया है। यह शुभ संकेत है कि नक्सलपंथी लोगों ने भी इन कंपनियों को अपने निशाने पर लिया है। किसानों, छोटे दुकानदारों, व्यापारियों के साथ देश के विद्यार्थी, नौजवानों को जोड़ने और लामबंद करने की जरूरत है। आजादी बचाओ आंदोलन इस काम में गंभीरता से जुटा है। दूसरा जरूरी काम है कि कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सीधा निशाना बनाया जाय और उनका कारोबार को सिविल नाफरमानी द्वारा ठप्प कराया जाय। इन कंपनियों में मोनसांटो, वालमार्ट,पेप्सी-कोका कोला, आईटीसी तथा रिलायंस और भारती को पहले दौर में लक्ष्य बनाया जा सकता है।
इस पूरे संघर्ष में एक खास सावधानी रखने की जरूरत है। इस सघर्ष में नए नेतृत्व को उभरने का पूरा मौका देना चाहिए। पूरी कोशिश होनी चाहिए कि राजनैतिक दलों के लोग यदि समर्थन दें तो पीछे से समर्थन दें, नेतृत्व उनके हाथ में न जाने दिया जाय। नहीं तो, जे. पी. आंदोलन जैसी भूल होने की संभावना होगी।

3 comments:

Unknown said...

यह विचार अक्षरशः सही है।पुरे देशवासियो को इस महा यज्ञ मे अपनी जान झोंक देनी होगी अगर देश बचाना ह तो।
और कोई विकल्प नही।

Unknown said...

यह विचार अक्षरशः सही है।पुरे देशवासियो को इस महा यज्ञ मे अपनी जान झोंक देनी होगी अगर देश बचाना ह तो।
और कोई विकल्प नही।

Unknown said...

राष्ट्रीय एवं जनहित के लिए अत्यावश्यक है। विदेशी कम्पनियों के उत्पादनों को वहिष्कृत कर स्वदेशीय अपनाने की अहम आवश्यकता है जिसे हर भारतीय को करना चाहिए।अतैव हर भारतीयों को स्वत:जागरूक होकर एक सूत्र में बंधकर स्वदेश(भारत) के रक्षार्थ स्वदेशीय उत्पादन को ही अपनी दिनचर्या बनायें।